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बहुभागीय पुस्तकें >> युद्ध - भाग 1

युद्ध - भाग 1

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :344
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2863
आईएसबीएन :81-8143-196-0

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राम कथा पर आधारित उपन्यास

चौदह

 

दिन का उजाला होने से पूर्व वानर सेना सन्नद्ध होकर, लंका के चारों द्वारों पर खड़ी हो गई। पूर्व द्वार पर नील, मैंन्द्व और द्विविद अपनी वाहिनियॉं को सजाए खड़े थे। दक्षिणी द्वार पर अंगद ने ऋषभ, गज, गवाक्ष और गवय की सहायता से व्यूह-रचा हुआ था। पश्चिमी फाटक पर प्रमाथी और प्रवस के साथ हनुमान डटे हुए थे। उत्तरी फाटक पर स्वयं राम और लक्ष्मण थे। सुग्रीव, जाम्बवान ओर विभीषण सुरक्षित सेना के साथ पीछे खड़े थे। योजना यह थी कि यदि राक्षस सेनाएं फाटक खोलकर सम्मुख युद्ध के लिए बाहर निकल आएं और लंका के द्वारों पर विकट युद्ध हो रहा हो तो सुग्रीव, जाम्बवान और विभीषण, उअपनी सेना के साथ लंका में प्रवेश कर, नगर के केन्द्र में विरूपाक्ष के नेतृत्व में स्थित स्कंधावार पर आक्रमण करें।

सेनापतियों ने अपने व्यूह संभाल लिए और प्रत्येक सैनिक अपने स्थान पर पहुंच गया तो राम के अगले आदेश की प्रतीक्षा होने लगी। किंतु तभी प्राचीर के भीतर, उत्तरी द्वार पर खड़ी राक्षस सेना ने रावण की जयजराकार का विकट नाद किया। इस प्रकार का उत्साहपूर्ण प्रबल जयजयकार लंका के भीतर से पहली बार सुनाई पड़ रहा था। राम चकित थे...ऐसा क्या हो गया भीतर पड़ी सेना में अकस्मात् ही जैसे ज्वार आ गया...राम ने तत्काल चर दौड़ा दिए। शीघ्र ही सुग्रीव, विभीषण, हनुमान, अंगद, नील तथा जाम्बवान उनके पास आ गए।

"इस कोलाहल का कारण क्या हो सकता है लंकापति?" राम ने विभीषण की ओर देखा, "सागर पार करने के पश्चात् से अब तक मैंने राक्षस सेना का ऐसा उत्साह नहीं देखा। और फिर यह कोलाहल केवल उत्तरी द्वार पर ही क्यों है? अन्य द्वारों पर उनकी सेना इसी प्रकार उत्साहित क्यों नहीं हो रही?"

"इसका अर्थ यह है कि इस द्वार पर नियुक्त सेना को कोई विशेष उपलब्धि हुई है।" विभीषण चिंतनशील मुद्रा में बोले, 'जो अन्य द्वारों की सेना की नहीं हुई।"

"युद्ध के पूर्व ही उन्हें कौन-सी उपलब्धि हो सकती है?" हनुमान बोले।

सब लोग चुपचाप सोचते रहे! सहसा विभीषण ही बोले,

"संभवतः इस द्वार की सेना का नेतृत्व स्वयं रावण कर रहा है।"

"कदाचित् ऐसा ही है।" राम, विभीषण से सहमत प्रतीत हो रहे थे, "यदि ऐसा है तो मैं चाहूंगा कि युद्धारम्भ से पहले हम रावण को एक चेतावनी और दे दें।"

"अब चेतावनी किसलिए?" अंगद ने कहा, "क्या हमारी सेना का सागर के इस पार उतरना उसके लिए पर्याप्त चेतावनी नहीं है?"

"किस रूप में चेतावनी देना चाहते हैं आप?" जाम्बवान धैर्यपूर्वक बोले, "एक चेतावनी वह भी है, जिसकी चर्चा युवराज कर रहे है।"

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. तेरह
  13. चौदह
  14. पन्द्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह
  18. उन्नीस
  19. बीस
  20. इक्कीस
  21. बाईस
  22. तेईस
  23. चौबीस

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